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बांबु बाँस की टोकरि

 बांस बहुत है खास 

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बांस घास ही है..घास का एक 

वृहद रूप...बांस हमारी संस्कृति में हर जगह विद्यमान है..या यों कहिये कि हम #बांस के बिना अपने पुराकाल से जुड़ ही नहीं सकते... प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य ने औजार बनाना चाहा तो पत्थरों के बाद उपलब्ध सबसे सुघड़ हथियार बांस से निर्मित ही रहा होगा... यह वह जीवन था जब मनुष्य जीने के लिए संघर्षरत था.. बाद में मनुष्य का सामाजिक जीवन उच्चता की ओर बढ़ने लगा तब उसे आनंद की आवश्यकता पड़ी तो सबसे पहले वाद्य यंत्र के रूप में बांस से बनी बांसुरी का निर्माण उसकी आवश्यकता थी...।


पहले पहल जब मानव को सर्दी, गर्मी, बरसात से बचाव के लिए गुफा के बाहर सुरक्षा की जरूरत पड़ी होगी तो बांस ने ही #छत का पहला भार स्वयं के कंधो पर लिया होगा... इसलिए बांस ने छत दी, सुरक्षा दी और आनंद दिया... जीवन की तीन प्रथम आवश्यकताओं में बांस ने नींव का काम किया है इसलिए हे बांस यह मानव जीवन सदैव तुम्हारा ऋणी रहेगा...।


वेद और पुराणों में #धनुष का वर्णन मिलता है..जो तीन हाथ से लेकर नौ पर्व (बांस की #पौर या गाँठें) तक वर्णित है तो यह संकेत बांस की ओर ही है...भगवान राम का धनुष "कोदण्ड" तो विशेष कर बांस से ही बना था.. #कोदण्ड पहले संज्ञा था जिसे धनुष के समानार्थक रूप में बाद में उपयोग किया गया... "हर कोदण्ड कठिन तेहि भंजा" अर्धाली में कोदण्ड का तात्पर्य धनुष हो गया जबकि रामजी कोदण्ड नामक धनुष का ही यूज़ करते थे... "कोदण्ड" के निर्माण की बड़ी रोचक कथा पुराणों में मिलती है खोज कीजियेगा...। 


अब आप कहेंगे कि यह कोदण्ड धनुष की चर्चा क्यों ले बैठा? तो भई धनुष के पहले लाठी हथियार के रूप में उपयोग की गई वह भी तो बांस की ही रही होगी !! बांस के दस नाम मिलते हैं - #वंश, #त्वकसार, #कर्मार, #त्वचिसार, #तृणध्वज, #शतपर्वा, #यवफल, #वेणु, #मस्कर और #तेजन..।


यथा - वंशे त्वकसारकर्मारत्वचिसारतृणध्वजा।

         शतपर्वा, यवफलो, वेणुमस्करतेजनाः।।


इससे हमारे प्राचीन साहित्य में बांस की महिमा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है... बांस को वंश कहा जाता है और हम आज जिस रूप में 'वंश' को याद करते हैं उसके पीछे बांस के क्रमशः गांठों या पर्वों का अभिप्राय निहित है..। वंश के पीछे मनुष्य ने यह भावना गढ़ ली कि यदि बांस या वंश को जलाया गया तो वंश नष्ट हो सकता है... जो भी हो मगर इस विश्वास के कारण भी बांस के प्रति मनुष्य की सोच सकारात्मक रही हो तो कुछ बुराई नहीं है... #पीपल के बाद #ऑक्सीजन के उत्सर्जन में बांस का ही नंबर ऊपर है.. इसलिए हमारे ऋषिगण यदि बांस की सुरक्षा के लिए कूट रचते हैं तो यह कूट भी वरेण्य है...। 


भारतीय पूजा पद्धति में धूप, दीप और नैवेद्य का वर्णन है उसमें #अगरबत्ती का कहीं उल्लेख नहीं है, मगर यह न जाने कहां से टपक पड़ी नही..अगरबत्ती में बांस जलाना यह पूजा विधान के सर्वथा प्रतिकूल है... धूप में उपयोग की जाने वाली सामग्री #वृक्षों से निकलने वाले सुगंध द्रव्य हैं न कि वृक्ष काटकर उपयोग की जाने वाली वस्तु... यज्ञ #समिधा में जिन लकड़ियों का उपयोग होता है उनमें भी वृक्ष की सूखी डालियों के उपयोग का स्पष्ट निर्देश है, काटकर जुटाई गई लकड़ी निषिद्ध है...। इसलिये हमारी पारंपरिक चेतना ने सदैव पर्यावरण को केंद्र में रखकर ही अपने जीवन मूल्यों को गढ़ा था...। 


हम प्रायः बांस के धनुष को ही मानते हैं जिसमें राम के पास कोदण्ड, शिव के पास पिनाक, अर्जुन के पास गांडीव, विष्णु के पास शार्ङ्ग, कर्ण के पास विजय नामक धनुष विख्यात रहे...ये नामी धनुष चाहे जिस धातु या वस्तु के रहे हों मगर इन सबने बांस को ही महत्ता प्रदान की... श्रीराम के पिता महाराज दशरथ खुद शब्दभेदी बाण चलाने के निष्णात थे...।


 #चंदबरदाई का - "चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।" 

यह दोहा बांस और धनुष विद्या को स्थापित करता ही है...ऐसा भी नहीं है कि केवल धनुष ही बांस का होता था, बाण या शर भी तो बांस के ही बनते हैं.. हमारे झाबुआ अंचल के हाट बाजार में धनुष और बाण बिकने के लिए आते ही है..। 


बांस हर रीति रिवाज में उपस्थित है वह जन्म के समय #सूप के रूप में उपस्थित है तो विवाह के समय #मंडप के रूप में और अंतिम यात्रा में #अर्थी के रूप में, यानी हर जगह है इसीलिये यह 'बंबू बाबू' अक्षतवीर्य बने हुए सब को लुभाते है... चाहे खुद चालीस साल में पुष्पित होते हों मगर जब पुष्पित और फलित होते हैं तो इसके बीज खाकर चूंहे भी बेतहाशा वंशवृद्धि करने लगते हैं... #बांझ लोग भी बांस के बीज खाकर कोशिश करते हैं कि उनके घर पालना बंध जाए... बांस जब इतनी लंबी अवधि तक अपने बीज और फूल छुपा कर रख सकता है तो जरूर उसके भीतर चमत्कारिक गुण होंगे ही, क्योंकि जो वनस्पतियां जितनी विकट परिस्थितियों में जीवन जीती है उतनी ही उसकी औषधीय गुणवत्ता प्रखरतर होती जाती है... संघर्ष कर्ता ही अंततः विजेता होता है..।।


जीवन के हर क्षेत्र में, सदा रहे तुम पास। 

सूप, टोकरी, मांडवा, औ ठठरी में बांस।। - साभार #गजेन्द्र जी


चित्र में - धान भरने की कोठी तैयार होती हुई...।।

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