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आर्यावत

!!! आर्यावर्त्त देश !!!
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 इस देश को आर्यों ने ही बसाया है और इसका नाम "आर्यावर्त" रखकर इस पर करोड़ों वर्ष शासन चलाया है।
इस देश का असली व पहला नाम आर्यावर्त्त ही है और इसी नाम से ही यह सब पुरानी पुस्तकों में आया है और इसी नाम को सब इतिहासकारों ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तकों में बताया है।

और "भारतवर्ष" ,"हिन्दुस्तान"," इण्ड़िया", आदि नाम थोड़े ही समय से आये ह़ै और यह नाम इस पर होने वाले शासकों ने अपने अपने शासन काल में बनाये हैं।

 आधुनिक इतिहासकार व आजकल के शिक्षित बाबू लोग तो यह बताते हैं कि इस देश को द्राविड़, कोल, भील अर्थात् अपने आपको आदिवासी कहने वाले लोगों ने बसाया है और आर्यों ने इरान से आकर इन्हें युद्ध में हराया है,व इन्हें अधीन बनाकर यहां अपना अधिकार जमाया है और चूंकि आर्य लोग ईरान से आये,इसी कारण से ये आर्य कहलाये -यह कथन बिल्कुल असत्य है।

यह भ्रान्ति "मैकालफी" इतिहासकारों की नई रची ऐतिहासिक पुस्तकों ने एवं इनसे शिक्षित बाबू लोगों ने फैलाई है और यह कहानी सर्वथा झूठी,काल्पनिक वा मनगढ़ंत बनायी है।

किसी भी पुराने इतिहास या संस्कृति की किसी भी प्राचीन पुस्तक में यह बात नहीं आयी है कि आर्यों के आने से पहले इस देश में किसी अन्य जाति का बसेरा था या आर्यों ने इरान से आकर यहां किसी बसी हुई जाति को खदेड़ा था।

वास्तविकता यह है कि आर्यों ने ही तिब्बत से आकर इस देश को बसाया और इसका नाम "आर्यावर्त्त" रखकर इस पर अपना शासन जमाया।आर्यों के आने से पहले न तो इस देश का कोई अन्य नाम था और न ही किसी अन्य जाति का यहां कयाम था।

इस आर्यावर्त्त देश को बसाने के बाद ही आर्यों ने ईरान आदि देशों को बसाया और समस्त भूमण्ड़ल पर अपना चक्रवर्ती राज्य जमाया।

वस्तुतः द्रविड़,कोल,भील आदि सब जातियां आर्य वंश से है।

यह द्रविड़,कोल,भील आदिवासी कहलाने वाली सब जातियां आर्यों से हैं,इन्हें आर्यों से पृथक जाति बताना एक बहुत बड़ी भूल व अज्ञानता है और यह अज्ञानता "मैकाले" नाम के अंग्रेज ने अपनी रची ऐतिहासिक पुस्तक द्वारा फैलाई है और इसी का अनुकरण करते हुए अन्य अंग्रेज लेखकों ने "आदिवासियों" की पृथक जाति बताई है।

अंग्रेजों को ऐसी मिथ्या कहानी बनाने के दो विषेश लाभ थे--

मैकाले द्वारा फैलाई भ्रान्ति से प्रथम लाभ :-

इससे प्रथम लाभ तो उन्होनें यह उठाया कि आर्य लोग जो इस देश को अपना निजी राष्ट्र समझकर इससे प्यार करते हैं तथा इसकी स्वतन्त्रता के लिए बलिदान व अपना जीवन तक निसार करते ह़ै ऐसी मिथ्या कहानियों द्वारा इनको भ्रान्ति में लाया जाय तथा इनकी निजी देश की भावनाओं को मिटाया जाये और इन्हें भी आक्रमणकारी और विदेशी बताया जाए तथा इनके ह्रदय व मस्तिष्क में भी विदेशीपन के भावों को बिठाया जाये ताकि यह हमारे विदेशीपन व आक्रमण पर कोई आपत्ति न लायें तथा हमारे शासन के विपरित कोई अन्य आन्दोलन न चलायें।

द्वितीय लाभ :-

दूसरा लाभ इन्होनें इससे यह उठाया कि यहां के लोगों में मजहबी भावनाओं व जातीयभेदों द्वारा इनमें घृणा को बढ़ाया और 'हिन्दू', 'सिक्ख', 'मुसलमानों' में अनेक प्रकार के भेदभाव उत्पन्न करके इन्हें आपस में लड़ाया व एक दूसरे का शत्रु बनाया और इस प्रकार अपनी शासन सत्ता को चिरस्थाई रखने के लिए अपना मैदान बनाया।

अंग्रेजों के प्रयत्नों का दुष्परिणाम :-

अंग्रजों के ऐसे प्रयत्नों के दुष्परिणाम उनके शासनकाल में ही स्पष्ट नजर आते रहे हैं व अब भी आ रहे हैं और इसके परिणामस्वरुप मुसलमानों ने "पाकिस्तान" बनवाया और सिक्ख "नखलिस्तान" बनाने के लिए अपना जोर लगा रहे हैं, और ईसाई भी यहां की अशिक्षित और गरीब जनता को लालच के वश में लाकर ईसाई बना 
आजकल के शिक्षित लोग जिनको अपने वास्तविक इतिहास का कुछ भी ज्ञान नहीं है एवं अपनी प्राचीन संस्कृति व वैदिक सभ्यता का कुछ भी ध्यान नहीं है,इस भ्रममूलक शिक्षा के प्रभाव में आकर यह भी ऐसी मिथ्या बातों को अपना रहे हैं और समस्त भूमण्डल पर अपने चक्रवर्ती राज्य का उज्जवल इतिहास भुला रहे हैं।

आर्यों का चक्रवर्ती राज्य :-

आर्यावर्त के पहले राजा 'इक्ष्वाकु' से लेकर कौरव-पांडवों के शासन-काल तक अर्थात् लगभग एक अरब छायनवे करोड़ आठ लाख बावन हज़ार वर्ष तक समस्त भूमण्डल पर आर्यों का ही चक्रवर्ती राज्य था।

आर्य वंशावली :-

आर्यावर्त के प्रथम राजा 'इक्ष्वाकु' की वंशावली-इनका वंश 'ब्रह्माजी' से प्रारम्भ होता है।ब्रह्माजी का पुत्र विराट,विराट का पुत्र मनु और मनु के पुत्र मारीच आदि दस पुत्र और इनके स्वयम्भू आदि सात पुत्र व इनके वंश से 'इक्ष्वाकु' प्रथम राजा हुए।

महाभारत ग्रन्थ आर्य राजाओं की वंशावली का पूर्ण वर्णन है।

पाताल देश :-

पाताल देश जिसे 'अमरीका' कहते हैं व अन्य सब देशों के जितने भी राजा थे वे यहां के आर्य शासन के हई आधीन थे और महाभारत के समय तक आर्यों का ही सर्वत्र संसार पर पूर्ण अधिकार था।

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