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आयुर्वेद v/s ऐलोपैथी

🌼 *आयुर्वेद v/s ऐलोपैथी*🌼 
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            दोनो प्रकार के डॉक्टर्स के पास जाने के बाद का अनुभव ।
            "एक 40 वर्षीय पुरुष रोगी ऐलोपैथ डॉक्टर के पास:-

सर मुझे कमर में कई दिनों से असहनीय दर्द हो रहा है, कई बार यह दर्द पैरो की तरफ जाता है जिससे चलने में परेशानी होती है, इसके अलावा गर्दन में भी दर्द रहता है जो कन्धों की ओर बढ़ रहा है, हाथ-पैरों में जकड़न रहती है, थकान-कमजोरी भी रहती है। मेरा कार्य ऑफिस में कंप्यूटर पर बैठने का है, वजन लगभग 85 किलो है।

ऐलोपैथ डॉक्टर:-

 रोगी का बी. पी. चेक करने के बाद, आपका बी.पी. 130/90 आया है, वैसे तो यह लगभग नार्मल है, आप एक काम करिये अभी दर्द के लिए एक दवा लिख दी है आप एक-दो दिन इसे खा लीजिये, साथ में कुछ बहुत जरुरी टेस्ट लिखे हैं इनको करवा के मुझसे मिलिए। 

टेस्टों के नाम:-
CBC, RBS, Uric Acid, Lipid profile, Vitamin- D3, Urine- R/M, X-Ray Cervical Spine and C.T. Scan-Lumbar Spine
 
रोगी:-
 ठीक है सर, टेस्ट काफी सारे लिखे हैं।

ऐलोपैथ डॉक्टर: हाँ,आपकी दिक्कत को सही से समझने के लिए सभी जरुरी हैं।

रोगी,सुबह खाली पेट,बड़ी सी लैब के बाहर लाइन लगाकर खड़ा होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा, वहाँ पहुंचने पर उसे यह पता चला जो टेस्ट उसे लिखे गए हैं उनकी जो कुल कीमत है उसमें सिर्फ 500 रूपए ज्यादा देने पर उसके लगभग 40 तरह की जांचों को भी पैकेज में शामिल कर दिया जायेगा। 
रोगी को लगा चलो अच्छा ऑफर है, इसे भी करवा लेते हैं शायद उसमे कुछ और पता लग जाये।

             टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद Vitamin- D3 थोड़ा कम आया, कोलेस्ट्रॉल बॉर्डर लाइन से थोड़ा बढ़ा हुआ आया, बाकी की रिपोर्ट्स नार्मल थीं, X - Ray Cervical Spine and C.T. Scan-Lumbar Spine में Degenerative Changes मिले।
(जो कि प्रत्येक व्यक्ति में उम्र के हिसाब से स्वाभाविक हैं।)

              रोगी सभी टेस्ट रिपोर्ट्स को इकठ्ठा करके अपने ऐलोपैथ डॉक्टर के यहाँ अपनी ऑफिस से छुट्टी लेकर बड़ी टेंशन में पहुंचा। डॉक्टर साहब ने बी.पी. चेक की तो 160/100 निकली।

डॉक्टर साहब ने कहा:-

जैसा मैंने सोचा था लगभग वैसा ही निकला आपका Vitamin-D3 कम है और कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है, बी.पी. भी बढ़ी हुई है, साथ में X - Ray, C.T. Scan में Arthritis के लक्षण हैं, आप हमारे यहाँ अपनी ECG और करवा लीजिये फिर मैं देखता हूँ क़ि क्या करना है।
 
                मरीज़ भगवान को याद करते हुए अपना ECG करवाता है, ECG करवाने के बाद, ECG करने वाले से पूछता है कि भाई कुछ दिक्कत तो नहीं है इसमें?

 ECG करने वाला कहता है की सर यह तो डॉक्टर साहब ही बताएँगे, आप यह ECG की रिपोर्ट लीजिये और डॉक्टर साहब के रूम के बाहर बैठकर अपने नंबर का इंतज़ार करिये।

             मरीज़ अपने नंबर का इंतज़ार करते व बढ़ते हुए सस्पेंस के साथ आखिरकार दोबारा डॉक्टर साहब के कमरे में पहुँचता है।   

ऐलोपैथ डॉक्टर:-
 ECG देखते हुए,आपकी ECG से कुछ बेहतर समझ नहीं आ रहा, आपके परिवार में किसी को बी.पी. की शिकायत तो नहीं?
 
मरीज़:-

 हाँ सर मेरे मम्मी-पापा दोनों को ही बी.पी. की शिकायत हैं। 

ऐलोपैथ डॉक्टर:-

 ठीक है, जितना जल्दी हो सके ECHO की जांच करवा लेना बाकी आपको बी.पी., कोलेस्ट्रॉल, Vitamin D3, ताकत व दर्द की कुछ दवाइयां लिख रहा हूँ इनको लीजिये, दर्द वाली जगह के लिए एक Ointment भी लिखा है इसकी मालिश करिये, ठंडी चीज़ों का परहेज करिये, थोड़ा exercise करना शुरू करिये, गर्दन के दर्द के लिए एक cervical pillow ले लीजिये,बाहर हमारी Dietitian बैठी हुई है उससे अपना Diet Chart बनवा लीजिये, ECHO करवा के मुझसे दोबारा मिलिए,तब तक यह दवाएं खाइये। 

मरीज़ डॉक्टर से:-

सर कोई घबराने की बात तो नहीं है?
 
डॉक्टर साहब:-

 नहीं ऐसा तो कुछ विशेष नहीं है, ECHO जब हो जाये तो उसे भी दिखाना,बी.पी. की दवा कभी बंद नहीं होगी, बाकी की दवाओं का देखेंगे कि आगे क्या करना है।

रोगी डॉक्टर साहब के कमरे से निकलकर dietitian के पास पहुँचता है,वह छोटे-मोटे परहेज़ बताती है,रोगी धीरे से Dietitian से पूंछता है, कभी-कभी Alcohol व Non-Veg ले लेता हूँ, इनको ले सकता हूँ, Dietitian मुस्कुराते हुए, Alcohol कम लेना सर, और Non-veg में Red meat नहीं लेना बाकी थोड़ा-बहुत ले सकते हैं (रोगी मन ही मन सोचते हुए की चलो कम से कम यह बंद करने को तो नहीं कहा।)  

रोगी ने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया,समय निकालकर ECHO भी करवा लिया,वह नार्मल आया, डॉक्टर साहब से मिलकर थोड़ा निश्चिंत भी हो गया, दवाएं खाते हुए 1 महीना हो गया, तकलीफों में थोड़ा आराम मिला, बी. पी. नार्मल, कोलेस्ट्रॉल नार्मल, Vitamin D3 थोड़ा बढ़ गया, वजन भी इस बीच में 3 किलो और बढ़ गया, डॉक्टर साहब ने सभी दवाएं continue खाने को कहीं, दर्द की दवा को जरुरत होने पर खाने को कहा, रोगी फिर से दवाएं 1 महीने खाता है, लेकिन जब भी दर्द की दवा या ताकत की दवा नहीं लेता तो दर्द और कमजोरी फिर वैसी ही हो जाती है,फिर से डॉक्टर साहब को अपनी परेशानी बताता है, इसके साथ-साथ रोगी को अब एक और नई परेशानी हो जाती है कि अब उसे कब्ज भी रहने लगती है और कभी-कभी एसिडिटी भी बहुत बढ़ जाती है, घुटनो में भी अब दर्द होने लगा है।
 
ऐलोपैथ डॉक्टर:-

 मैं आपकी दर्द की दवा में बदलाव कर रहा हूँ यह थोड़ा कम नुकसान करेगी इसे आप रेगुलर खा सकते हैं, साथ में पेट साफ़ के लिए एक दवा और लिख दी है इसे रात में सोते समय लें,और सुबह खाली पेट लेने की एक छोटी सी दवा और है इससे आपको एसिडिटी बिल्कुल नहीं होगी।
बीच में रोगी को फिर से दर्द असहनीय होने पर डॉक्टर साहब से मिलना पड़ा, इस बार डॉक्टर साहब ने रोगी को फिजियोथेरेपी करवाने की सलाह दी, रोगी ने कुछ दिन लगातार इसे भी करवाया लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं मिला, ऐसा ही अगले 3-4 महीने चलता रहा,रोगी जब दवा खाता है तो आराम, नहीं खाता तो फिर से वही परेशानी, अपने ऐलोपैथ डॉक्टर के पास जाकर रोगी यह परेशानी बताता है, डॉक्टर साहब कहते हैं कि चलने दीजिये, यह दवाएं तो आपको खानी होंगी, थोड़ा वजन कम करिये तो अच्छा फायदा हो सकता है।

             आखिरकार रोगी को लगता है कि इस बड़े से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के बड़े से सुपर स्पेशिलिस्ट डॉक्टर साहब के अलावा और विकल्पों को तलाशा जाये, अपने जानने वालों, अपनी ओर से नेट आदि पर सर्च करने के बाद उसे लगा कि आयुर्वेद में ट्रीटमेंट कराया जाये।

 रोगी आयुर्वेद डॉक्टर के पास जाता है और शुरू से अंत तक अपनी सारी जानकारी आयुर्वेद डॉक्टर को देता है, वैद्य जी से पूछता है कि सर मेरी दिक्कत सही क्यों नहीं हो रही टेस्ट में जो आ रहा है वह कुछ दिनों की दवाओं को खाने के बाद ठीक तो होता है लेकिन जैसे ही दवाएं बंद करता हूँ तो स्थिति फिर से वैसी हो जाती है।

 वैद्य जी पूछते हैं कि, आप जिस ऑफिस में काम करते हैं वहां A.C.है ?,चाय कितना पीते हैं? 

मरीज़ बड़े उत्साह से:-

हाँ सर मेरे ऑफिस और घर दोनों जगह A.C. है, चाय ऑफिस में रहने की वजह से 3-4 या कभी-कभी इससे भी ज्यादा हो जाती है, वैद्य जी,मेरी दिक्कत क्या है? क्या आप इसे बता सकते हैं? क्या आप इसे सही कर सकते हैं? 

 वैद्य जी, थोड़ा मुस्कुराते हुए, जी मैं आपको सबसे पहले आपकी दिक्कत को समझाता हूँ, आप समझ सकेंगे कि दिक्कत क्या है और इस दिक्कत का उपचार हमारे पास न होकर आपके पास ही है।

          वैद्य जी की यह बात सुनकर मरीज़ थोड़ा चकराता है और अपनी समस्या का उपचार खुद से ही, समझने के लिए और उत्सुक हो जाता है।

 वैद्य जी :-

 आपकी समस्या से जुडी दिक्कत के विषय में आपको समझाता हूँ, आप सबसे पहले शरीर के कार्य करने के तरीके को समझिये, हमारे शरीर में Blood एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता है, हम कुछ खाते हैं तो हम उसे गले तक तो पहुंचा देते हैं लेकिन पेट में जाता है,आंतो में जाता है, हमारे शरीर से मल बनकर शरीर के बाहर भी आता है, कहने का मतलब यह है कि हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से एक वायु मौजूद रहती है जो हमारे शरीर के अंदर की प्रत्येक गति को नियंत्रित करती है, इसी तरह हम सांस लेते हैं वह भी एक तरह की वायु है, आयुर्वेद में हम इसे “वात” कहते हैं।

               ठीक ऐसे ही हमारे सभी के शरीर में टॉक्सिन्स (दूषित चीज़ें) बनते हैं जैसे पसीना-यूरिन-मल लेकिन कई बार हम अपने खाने-पीने या रहने की आदतों में बदलाव कर लेते हैं जिससे यह मल शरीर से सही से बाहर नहीं आ पाते, जैसे आप ज्यादा समय A.C. में रहते हैं जिससे आपको पसीना नहीं आता, Non-veg खाते हैं, Alcohol पीते हैं, अधिक चाय पीते हैं, देर से पचने वाले खान-पान या तली-भुनी चीज़ों को अधिक खाते हैं, लगातार काम में बिजी रहने की वजह से Physical Activity कम करते हैं, शाम को खाना अधिक खाते है और उसके तुरंत बाद सो जाते हैं, इन सभी कारणों से शरीर में दूषित चीज़ें बढ़ जाती हैं, जो शरीर में रहने वाली वायु की वजह से एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाती हैं, जिससे शरीर में दर्द रहना-जकड़न रहना-सूजन रहना आदि दिक्कतें हो जाती है, आयुर्वेद में हम इसे "आम" कहते हैं। 

               ऐसे ही हमारी पृथ्वी पर Gravity (गरूत्वाकर्षण) मौजूद है, जिसकी वजह से कोई भी चीज़ ऊपर से नीचे की ओर आती है, शरीर में भी यह सिद्धांत लागू होता है, आयुर्वेद में भी वात की गति को ऊपर से नीचे की ओर माना गया है, इसे आयुर्वेद की भाषा में “वात की अनुलोम गति” कहते हैं, लेकिन जब शरीर में रूखी चीज़े और गरिष्ठ चीज़ें लगातार पहुँचती हैं तो शरीर में भी रुखापन बढ़ जाता है, जिससे वात की गति नीचे न होकर ऊपर को हो जाती है इसे आयुर्वेद में “वात की प्रतिलोम गति” माना गया है जो बीमारियों को बढाती है, आप खान-पान तो गलत कर ही रहें हैं साथ में केमिकल वाली दवाओं के लेते रहने से यह रूखापन और बढ़ गया है इसलिए ही आपको कब्ज और एसिडिटी बढ़ी है।

      अब आपको करना यह है कि अपने खाने-पीने में बदलाव करना है, अपनी दिनचर्या में बदलाव करना है। आयुर्वेद में हम इसे "निदान परिवर्जन" कहते हैं, अनावश्यक तनाव से बचना है, साथ में आयुर्वेद की कुछ वात को अनुलोम करने वाली दवायें, टॉक्सिन्स (आम) को निकालने व शमन करने वाली दवाओं का सेवन करने से आप स्वस्थ हो सकते हैं, इसलिए आरम्भ में मैंने आपसे कहा था कि इस समस्या का उपचार आपके हाथ में है। 

          वैद्य जी के द्वारा समझाई गई इस प्राकृतिक थ्योरी रोगी को समझ में भी आयी और उसने बताये अनुसार निदान परिवर्जन व आयुर्वेद चिकित्सा आरम्भ की सिर्फ 2 माह में लाभ हुआ और कुछ माह दवाओं और परहेज के बाद आयुर्वेद दवायें भी बंद कर सके।

         यह स्टोरी किसी व्यक्ति विशेष,किसी चिकित्सा पद्धति को नीचा दिखाने के उद्देश्य से नहीं बताई है, इसका उद्देश्य वर्तमान समय में ऐलोपैथ जगत के चिकित्सा करने के तरीके, चलन और आयुर्वेद के प्राकृतिक सिद्धांत के द्वारा मिल रहे हज़ारों रोगियों के लाभ पर आधारित अनुभवों पर लिखी है,जिसका उद्देश्य सही जागरूकता प्रसारित करना व यह बताना है कि जब तक शरीर में होने वाली समस्याओं का प्राकृतिक तरीके से समाधान नहीं किया जायेगा तब तक रोग में लाभ नहीं मिलता। प्रकृति के नियमों के विपरीत चिकित्सा करने से कुछ स्थितियों में अल्पकालिक लाभ तो मिल सकता है लेकिन स्थाई समाधान कभी नहीं होता,इसलिए प्रकृति की ओर मुड़ें व अधिक से अधिक लोगों को इस विषय पर जागरूक करें, क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति ही बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकता है। प्राकृतिक संसाधनों व सिद्धांतो से विहीन चिकित्सा को गरीब कहना हितकर है। आयुर्वेद के चिकित्सकों के पास यह अवसर है कि वे आयुर्वेद के जीवन शास्त्र को समाज में सही तरह से प्रसारित करें!
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