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वेद के मंत्रों का अर्थ करने को भाष्य करना कहते हैं । इन लाखों-करोड़ों वर्षों के लंबे अन्तराल, साधना का अभाव व कालान्तर में प्रचलित भाषा शैली के अनुसार वेद के अभिप्राय को समझना उत्तरोत्तर कठिन होता चला गया । यही कारण था कि रावण, स्कन्द स्वामी, उद्गीथ, वररूचि,भट्ट,भास्कर, महीधर व उव्वट आदि बाद के भाष्यकार वेद के वास्तविक अर्थों को अपने भाष्यों में प्रकट न कर पाए । इसी तरह पाश्चात्य विद्वान भी वेदों में निहित उदात्त ज्ञान का मूल्यांकन न कर सके । उन्नीसवीं शताब्दि के उत्तरार्ध में ऋषि दयानन्द ने नैऋत्तिक प्रणाली से भाष्य करके दिखाया कि वेदों में बीज रूप से सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान विद्यमान है ।  - ईश्वर वैदिक

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