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बांस एक, उपयोग अनेक

 ‘बांस एक, उपयोग अनेक:’ बांस उगाइये, बांस से बनाइए, बांस में पकाइए और बांस को भी खाइए



‘हरा सोना’ कहे जाने वाले बांस की भारत में 100 से भी ज्यादा प्रजातियाँ हैं। कुछ का उपयोग घर, फर्नीचर, बर्तन और हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स बनाने के लिए होता है तो कुछ का उपयोग खाने के लिए भी किया जाता है!

उत्तर-पूर्वी राज्यों में बांस का सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल घर बनाने से लेकर पुल बनाने तक में किया जाता है। इसके आलावा रोज़मर्रा की चीजों जैसे स्ट्रॉ, टिफ़िन और बोतल आदि भी बांस से बनाए जाते हैं।

1. ड्रिप इरीगेशन सिस्टम बनाने के लिए:

यदि आप कभी मेघालय गए हैं तो आपने वहां पहाड़ी इलाकों में पानी की छोटी-छोटी धाराओं को देखा होगा। इन इलाकों में खेत तक पानी पहुंचाने के लिए पाइप के बदले बांस का उपयोग किया जाता है।

पिछले कोई 200 सालों से खासी और जैंतिया पहाड़ियों में रहने वाले लोग बांस का उपयोग पाइप बनाने के लिए करते हैं। यह ड्रिप इरीगेशन सिस्टम की तरह काम करता है। इसके ज़रिए, बांस में हर एक मिनट में 18 से 20 लीटर पानी आता है जिसे किसान अपने काली मिर्च और पान की खेतों में इस्तेमाल करते हैं।

ड्रिप सिस्टम बनाने के लिए सबसे पहले बांस को दो भागों में काटा जाता है और फिर एक स्थानीय छेनी, दाओ की मदद से इसे चिकना किया जाता है। पानी के फ्लो को रेगुलेट करने के लिए अलग-अलग साइज़ के बांस का इस्तेमाल किया जाता है।

2. जापी:

असम के किसी भी घर में आपको जापी मिल जाएगी। कोन आकार में बनी इस जापी को कारीगर अलग-अलग चीजों से सजाते हैं। बिहू उत्सव में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल होता है।

बांस और ताड़ के पत्तों को साथ में बुनकर जापी तैयार किया जाता है। यह बहुत काम की चीज़ है क्योंकि धान के खेतों में काम करने वाले किसानों के लिए यह छाते का काम करती है। उन्हें तेज धूप और बारिश से बचाती है। इसमें कोई साज-सज्जा नहीं होती और इसे सादा ही रखा जाता है।

3. बैम्बू शूट/बांस का ऊपरी हिस्सा

शायद बहुत ही कम लोगों को पता हो पर बांस का ऊपरी कच्चा हिस्सा पकाया भी जाता है। जी हाँ, उत्तर-पूर्वी राज्यों में इससे सब्ज़ी और अचार बनाया जाता है। इसे कच्चा, सूखा और फर्मेंट करके खाया जा सकता है। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषण से भी भरपूर है। इसमें कम कैलोरी और सुगर होती है और फाइबर ज्यादा मात्रा में होता है।

इसमें पोटैशियम, कॉपर और मैगनीज़ जैसे मिनरल्स और एमिनो एसिड की फॉर्म में प्रोटीन होते हैं। बैम्बू शूट, मूल रूप से बांस के पौधे में निकलने वाला नया अंकुर होता है, जो अक्सर बसंत के मौसम में निकलता है। क्रीम रंग के शूट को निकलने के लिए इसकी बाहरी कठोर परत को हटाया जाता है। इसे आप पतले-पतले टुकड़ों में काट सकते हैं और सूखा सकते हैं या फिर इसे कुछ लाल मिर्च काटकर उनके साथ स्टोर कर सकते हैं।

4. बांस का टम्बलर या गिलास:

अरुणाचल प्रदेश के लेप्रादा में बसा इलाका बसर स्वर्ग से कम नहीं है। इस इलाके में 26 गाँव शामिल हैं और यहाँ के लोग हर तरह से प्रकृति से जुड़े हुए हैं। जिन्हें प्रकृति से लगाव है वे लोग यहाँ पर ट्रैकिंग के लिए आ सकते हैं और यहाँ के जंगलों की सैर कर सकते हैं।

ये गाँववाले चावल से बियर बनाते हैं, जिसे पोका कहते है और यात्रियों को यह बांस के बने टम्बलर में दी जाती है। गाँव के लोग इसी टम्बलर में पीते हैं और इसे साइड में रस्सी की मदद से लटका लिया जाता है। इन टम्बलर का प्रयोग उत्सव में भी किया जाता है। प्लास्टिक या पेपर कप की जगह इसका इस्तेमाल किया जाता है।

5. खाना पकाने के लिए बांस का उपयोग:

मैंने हमेशा अपनी एक दोस्त से सुना है कि कैसे उनके यहाँ बांस में चावल पकाए जाते हैं। अरुणाचल प्रदेश कई इलाकों में बांस में चावल पकाया जाता है। इसके लिए बांस को अंदर से खोखला किया जाता है। इसे ‘सुंगा शाऊल’ कहते हैं।

चावल या मीट को पत्तों में लपेटकर बांस के अंदर रखा जाता है और फिर कोयले में इसे पकाया जाता है। बांस के जलने से जो धुंआ निकलता है वह चावल और मीट को एक अलग स्वाद देता है। बांस को बर्तन के रूप में ढ़ालने के लिए इसे ऊपर से बीच तक स्प्लिट किया जाता है। नीचे के हिस्से को पूरा रखा जाता है। अब इसे धोकर इसमें पानी भरकर पूरी रात के लिए रखा जाता है। बांस रातभर में पानी सोख लेता है और यह नमी खाना पकाते समय काम आती है।

सुबह पानी निकालकर इसमें चावल या मीट को भरा जाता है और फिर पकाया जाता है।

इसी तरह और भी बहुत सारे उपयोग है बांस के। अगर आप भी बांस का इस्तेमाल दैनिक जरूरतों में करते हैं तो हमें जरूर बताइए!


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