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सत्यानाशी घिमोय

अनुभूत प्रयोग 
घिमोय :---------

 सत्यानाशी या घमोई (वानस्पतिक नाम ---Argemone mexicana)
       एक अमेरिकी वनस्पति है। लेकिन, भारत में यह सब स्थानों पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोड़ने से, उसमें से स्वर्ण सदृश, पीतवर्ण (पीले रंग) का दूध निकलता है। इसलिए, इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते है। सत्यानाशी का फल चौकोर, कांटेदार, प्याले-जैसा होता है। जिनमें राई की तरह, छोटे-छोटे काले बीज भरे रहते हैं। जो जलते कोयलों पर डालने से , भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में , इसको भड़भांड़ या भड़भड़वा भी कहते है। अवधी में, इसे कुटकुटारा कहते है। इस वनस्पति के सारे अंगों पर, कांटे होते है। आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को, स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी के नाम से लिखा है।
      इसके बीज जहरीले होते हैं। कभी-कभी सरसों में , इसे मिला देने से , उसके तेल का उपयोग करने वालों की मृत्यु भी हो जाती है। इसके बीज मिली हुई,सरसों के तेल के प्रयोग करने वालो को , पेट की झिल्ली ( पेरिटोनियम ) में , पानी भरने का एक रोग एपिडेमिक ड्रॉप्सी भी हो जाता है।
घिमोय घन वटी :-------
      घिमोय के सूखे पंचांग ( फूल, फल, जड़ , पत्ते व तना ) को लेकर, मोटा-मोटा कूट लें। एक भाग औषध में आठ भाग पानी मिलाकर, उबालकर काढा़ बनावें । जब पानी का चौथा भाग रह जाएं तो, इसका घनसत्व बना लें। घनसत्व बन जाने पर, इनकी 500 मिली ग्राम की गोलिया बनाकर, छाया में सुखा लें।
मात्रा व अनुपान; ------
      सुबह- शाम 1-1 गोली पानी के साथ सेवन करें । 
उपयोगी :--------
      इसके सेवन करने से सभी प्रकार के सिर दर्द, आधाशीशी,आधाशीशी,आधाशीशी,आधाशीशी,मोतीयाबिंद का पानी उतरने का सिरदर्द, पीनस रोग, पुराना जुकाम से उत्पन्न होने वाले दिमाग के कीडे़ और उसके सभी प्रकार उपद्रव, बच्चों के कफज ज्वर, उन्माद, बेहोशी, हिस्टीरिया, मृगी, अनिंद्रा, बाइटे ( गश खाना ) , मुंह का टेडा़ हो जाना, पक्षाघात, सुष्मना के रोग, उच्च रक्तचाप, जीभ के छाले, मियादी बुखार, औषधीय के दुष्प्रभाव से , गूंगा हो जाना, खांसी, श्वास रोग, फेफडो़ की टी बी, खांसी में रक्त आना, निमोनिया, सीने का दर्द, रक्त की कमी, पीलीया, अजीर्ण, पेट दर्द, गुल्म ( वायु गोला का दर्द ) , खूनी व वादी बवासीर, उपदंश ( गूप्त रोग), सुजाक, स्वप्नदोष, प्रमेह, शीघ्रपतन, वीर्य विकार, श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, गर्भपात होने का डर, कुष्ठ, नासूर ( पुराना घाव ), दाद, खाज, फोडे़-फुंसी, सभी प्रकार के चर्म रोग, नया -पुराना बुखार, मलेरिया, मियादी बुखार, प्रसूता का बुखार, फ्लू , चूहे काटे का ज्वर, अज्ञात ज्वर, विषेले जानवर के काटने का ज्वर, बुखार का प्रलाप, सन्निपात ज्वर, चेचक, पागल कुत्ते का काटना, धातुगत ज्वर, जीर्ण ज्वर, फेफडे़ के व्रण, आदि रोगों को नष्ट करने वाली महाऔषध है ।

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