"माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या" -अथर्वेद
अर्थात-पृथ्वी मेरी माता है और मैंं उसका पुत्र हुंं ...।।
22 अप्रैल को हर साल विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है...
पृथ्वी दिवस मनाने का उद्देश्य पृथ्वी को संरक्षित करने की आवश्यकता और महत्व को उजागर करना है... इस अवसर पर हम यह सोचें कि हम पृथ्वी के लिए क्या अच्छा और क्या बुरा कर रहे... पृथ्वी बिना कुछ कहे हमे कितना दे रही हैं... ओर बदले में हम क्या दे रहे है... इन्ही बातों को टटोलने की आवश्यकता है...।
हमारे पूर्वज खेत पर पांव देने से पहले उस मिट्टी को प्रणाम करते थे,उसकी पूजा कर हल बखर चलाते थे,कुँआ खोदना हो तो माता से प्रार्थना कर उसमें गड्ढा करते थे...क्या वो अनपढ़ थे..!!क्या उन्हर ज्ञान नही था..!!
हमारे धार्मिक ग्रंथों में पुराणों में कथा कहानियों में यहाँ तक कि वेदो में भूमि का वर्णन मिलता हैं...अथर्वेद के भूमि -सूक्त में पृथ्वी की माता के रूप में वंदना की गयी है...यह वैदिक ऋचाएं हमे अपने ग्रह पृथ्वी तथा पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण के बारे में शिक्षा प्रदान करती हैंं...।
भूमि-सूक्त –
सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु ॥१॥
पृथ्वी माता को नमस्कार! सत्य (सत्यम), ब्रह्मांडीय दैवीय नियमो (रितम), सर्वशक्तिमान परब्रहम मे विद्यमान आध्यात्मिक शक्ति, ऋषियो मुनियों की समर्पण भाव से किये गये यज्ञ और तप,–इन सब ने मा धरती को युगों –युगों से संरक्षित और संधारित किया है। वह (पृथ्वी) जो हमारे लिए भूत और भविष्य की सह्चरी है, साक्षी है,- हमारी आत्मा को इस लोक से उस दिव्य ब्रह्मांडीय जीवन (अपनी पवित्रता और व्यापकता के माध्यम से) की और ले जाये।
असंबाधं बध्यतो मानवानां यस्या उद्वतः प्रवतः समं बहु ।
नानावीर्या ओषधीर्या बिभर्ति पृथिवी नः प्रथतां राध्यतां नः ॥२॥
– वह धरती मॉ जो अपने पर्वत, ढलान और मैदानों के माध्यम से मनुसष्यों तथा समस्त जीवों के लिए निर्बाध स्वतंत्रता (दोनों बाहरी और आंतरिक दोनों) प्रदान करती है। , वह कई पौधों और विभिन्न क्षमता के औषधीय जड़ी बूटी को जनम देती हैह उन्हे परिपोषित करती है ; वह हमें समृद्ध करे और हमें स्वस्थ बनाये...।
यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः ।
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ॥३ ॥
समुद्र और नदियो क जल जिसमें गूथा हुआ है, इसमें खेती करने से अन्न प्राप्त होता है, जिस पर सभी जीवन जीवित है, वह मॉ पृथ्वी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे।
यस्यां पूर्वे पूर्वजना विचक्रिरे यस्यां देवा असुरानभ्यवर्तयन् ।
गवामश्वानां वयसश्च विष्ठा भगं वर्चः पृथिवी नो दधातु ॥४॥
इस पर आदिकाल से हमारे पूर्वज विचरण करते रहे, इस पर देवों (सात्विक शक्तियों) ने असुरों(तामसिक शक्तियों) को पराजित किया। इस पर गाय, घोडा, पक्षी,( अन्य जीव –जंतु) पनपे। वह माता पृथ्वी हमें समृद्धि और वैभव प्रदान करे।
गिरयस्ते पर्वता हिमवन्तोऽरण्यं ते पृथिवि स्योनमस्तु ।
बभ्रुं कृष्णां रोहिणीं विश्वरूपां ध्रुवां भूमिं पृथिवीमिन्द्रगुप्ताम् ।
अजीतेऽहतो अक्षतोऽध्यष्ठां पृथिवीमहम् ॥५॥
मातृ पृथ्वी के लिए नमस्कार हे मातृ पृथ्वी, आपके पर्वत, और बर्फ से ढकी चोटिया, घने जंगल हमे शीतलता और सुखानुभुति प्रदान करें । हे मॉ आप अपने कई रंगों के साथ विश्वरूपा हो – भूरा रंग (पहाड़ों की), नीला रंग( समुद्र के जल का) , लाल रंग (फूलों का); (लेकिन इन सभी विस्मयकारक रूपों के पीछे) हे मॉ धरती, आप ध्रुव की तरह हैं- दृढ और अचल; और आप इंद्र, द्वारा संरक्षित हैं। (आपकी नींव जो कि अविजित है, अचल है, अटूट है, उस पर मै दृढ्ता से खडा हु...।।
आप सभी को #विश्व_पृथ्वी_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐धरती मैया सदैव आपका मंगल करे ।।
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