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विद्युत् का आविष्कार और अगस्त_मुनि

 भारतातील अनेक रूषी महामुनी वैज्ञानिक होते. त्यापैकी महामुनी अगस्त रूषी हे एक होते.. 


       अगस्त्य (तमिल में अगतियार) एक वैदिक ॠषि थे। ये वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। इनका जन्म   काशी में हुआ था आजकल वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। 


      इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गये थे। महर्षि अगस्त्य वैदिक वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में एक ऋषि थे। 


      महर्षि अगस्त्य को मं‍त्रदृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या काल में उन मंत्रों की शक्ति को देखा था। ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। 

साथ ही इनके पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के पुत्र इध्मवाह भी नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं। 

महर्षि अगस्त्य और उनकी पत्नी लोपामुद्रा आज भी पूज्य और वन्द्य हैं नक्षत्र-मण्डल में ये विद्यमान हैं। दूर्वाष्टमी आदि व्रतोपवासों में इन दम्पति की आराधना-उपासना की जाती है।


     महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का पुत्र माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया, जो विद्वान और वेदज्ञ थीं।

 

विद्युत् के आविष्कारक अगस्त्य --

     बल्ब के अविष्कारक थॉमस एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे बल्ब बनाने में मदद मिली। 

       ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ की प्राचीनता पर भी शोध हुए हैं और इसे सही पाया गया। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं:- 


विद्युत् सैल ---


संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। 

छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥ 

दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। 

संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥ -अगस्त्य संहिता 

      ------- अर्थात :एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (मयूर ग्रीवा जैसा रंगवाला --नीला तूतिया Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust—गीला काठ का बुरादा  ) लगाएं,  ऊपर पारा (mercury) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रा-वरुण शक्ति (Electricity) का उदय होगा। 


इलेक्ट्रोप्लेटिंग ---


 अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating)के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली ---

कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। 

यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥ 

आच्छादयति तत्ताम्रं स्वर्णेन रजतेन वा। 

सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्‌॥ -5 (अगस्त्य संहिता) 

अर्थात-कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में सुशक्त जल (तेजाब का घोल) इसका सान्निध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।


बैटरी ---

अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु। 

एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥ -अगस्त्य संहिता 

महर्षि अगस्त्य कहते हैं-सौ कुंभों (उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े गए सौ सेलों) की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदलकर प्राणवायु (Oxygen)तथा उदान वायु (Hydrogen)में परिवर्तित हो जाएगा। 


 विद्युत तार (केबुल )--


 आधुनिक नौकाचलन और विद्युत वहन, संदेशवहन आदि के लिए जो अनेक बारीक तारों की बनी मोटी केबल या डोर बनती है वैसी प्राचीनकाल में भी बनती थी जिसे रज्जु कहते थे। 

नवभिस्तस्न्नुभिः सूत्रं सूत्रैस्तु नवभिर्गुणः। 

गुर्णैस्तु नवभिपाशो रश्मिस्तैर्नवभिर्भवेत्। 

नवाष्टसप्तषड् संख्ये रश्मिभिर्रज्जवः स्मृताः।। 

------9तारों का सूत्र बनता है। 9 सूत्रों का एक गुण, 9 गुणों का एक पाश, 9 पाशों से एक रश्मि और 9, 8, 7 या 6 रज्जु रश्मि मिलाकर एक रज्जु बनती है


अन्य योगदान---


 आकाश में उड़ने वाले गर्म गुब्बारे ---


अगस्त्य मुनि ने गुब्बारों को आकाश में उड़ाने और विमान को संचालित करने की तकनीक का भी उल्लेख किया है। 

वायुबंधक वस्त्रेण सुबध्दोयनमस्तके। 

उदानस्य लघुत्वेन विभ्यर्त्याकाशयानकम्।। 

------अर्थात :उदानवायु (Hydrogen)को वायु प्रतिबंधक वस्त्र में रोका जाए तो यह विमान विद्या में काम आता है। यानी वस्त्र में हाइड्रोजन पक्का बांध दिया जाए तो उससे आकाश में उड़ा जा सकता है। 

"जलनौकेव यानं यद्विमानं व्योम्निकीर्तितं।  

कृमिकोषसमुदगतं कौषेयमिति कथ्यते। 

सूक्ष्मासूक्ष्मौ मृदुस्थलै औतप्रोतो यथाक्रमम्।। 

वैतानत्वं च लघुता च कौषेयस्य गुणसंग्रहः। 

कौशेयछत्रं कर्तव्यं सारणा कुचनात्मकम्। 

छत्रं विमानाद्विगुणं आयामादौ प्रतिष्ठितम्।। 

अर्थात उपरोक्त पंक्तियों में कहा गया है कि विमान वायु पर उसी तरह चलता है, जैसे जल में नाव चलती है। तत्पश्चात उन काव्य पंक्तियों में गुब्बारों और आकाश छत्र के लिए रेशमी वस्त्र सुयोग्य कहा गया है, क्योंकि वह बड़ा लचीला होता है। 

वायुपुरण वस्त्र :प्राचीनकाल में ऐसा वस्त्र बनता था जिसमें वायु भरी जा सकती थी। उस वस्त्र को बनाने की निम्न विधि अगस्त्य संहिता में है- 

क्षीकद्रुमकदबाभ्रा भयाक्षत्वश्जलैस्त्रिभिः। 

त्रिफलोदैस्ततस्तद्वत्पाषयुषैस्ततः स्ततः।। 

संयम्य शर्करासूक्तिचूर्ण मिश्रितवारिणां। 

सुरसं कुट्टनं कृत्वा वासांसि स्त्रवयेत्सुधीः।। -अगस्त्य संहिता 

-----अर्थात --रेशमी वस्त्र पर अंजीर, कटहल, आंब, अक्ष, कदम्ब, मीरा बोलेन वृक्ष के तीन प्रकार ओर दालें इनके रस या सत्व के लेप किए जाते हैं। तत्पश्चात सागर तट पर मिलने वाले शंख आदि और शर्करा का घोल यानी द्रव सीरा बनाकर वस्त्र को भिगोया जाता है, फिर उसे सुखाया जाता है। फिर इसमें उदानवायु भरकर उड़ा जा सकता है। 


     

मार्शल आर्ट-----

    महर्षि अगस्त्य केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की दक्षिणी शैली वर्मक्कलै के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं, वर्मक्कलै निःशस्त्र युद्ध कला शैली है। 

    -------- मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अपने पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) को यह कला सिखायी तथा मुरुगन ने यह कला अगस्त्य को सिखायी। महर्षि अगस्त्य ने यह कला अन्य सिद्धरों को सिखायी तथा तमिल में इस पर पुस्तकें भी लिखी। 


दक्षिणी चिकित्सा पद्धति 'सिद्ध वैद्यम्' के जनक--


 महर्षि अगस्त्य दक्षिणी चिकित्सा पद्धति सिद्ध- वैद्यम्के भी जनक हैं। उनके द्वारा रचित अँगूठे की सहायता से भविष्य जानने की कला भी काफी प्रचलित है। 


  वैयाकरण अगस्त्य ------


      अगस्त्य तमिल भाषा के आद्य वैय्याकरण हैं। उन्हें दक्षिण में तमिल के पिता अगतियम, अगन्तियांगर के नाम से भी जाना जाता है, उनके व्याकरण को अगन्तियम |

-------- ग्रंथकार परुनका द्वारा लिखित यह व्याकरण 'अगस्त्य व्याकरण' के नाम से प्रख्यात है। यह कवि  ऋषि अगस्त्य के ही अवतार माने जाते हैं। यह कवि शूद्र जाति में उत्पन्न हुए थे इसलिए यह 'शूद्र वैयाकरण' के नाम से प्रसिद्ध हैं।

------- तमिल विद्वानों का कहना है कि यह ग्रंथ पाणिनि की अष्टाध्यायी के समान ही मान्य, प्राचीन तथा स्वतंत्र कृति है जिससे ग्रंथकार की शास्त्रीय विद्वता का पूर्ण परिचय उपलब्ध होता है। 

------तत्पश्चात उनके व्याकरण पर ही तोलकाप्पियर वैयाकरण ने तोलकाप्पियम ग्रन्थ ---लिखा |

     मलय तिरुवियाडल पुराणम में ---शिव ने अगस्त को दक्षिण भारत भेजा तो तमिल भाषा में ही निर्देश दिए एवं तमिल भाषा की शिक्षा दी उन्हें पुनः कम्बोडिया भेजा गया जिसे अगस्त ने ही बसाया | 


     काशी में विद्वानों की श्रंखला का इतिहास भाषा के उस आदिपर्व से ही चला आ रहा है जब आदिस्वरुप महादेव शिव ने अपने डमरू की ध्वनि से शिव-सूत्र महर्षि पाणिनि को दिए| 

------संस्कृत व्याकरण के अमूल्य ग्रन्थ अष्टाध्यायी में पाणिनि इस बात का उल्लेख करते हुए कहते हैं की शिव-सूत्र से ही कई भाषाओं जैसे संस्कृत आदि का उद्भाव हुआ| 

-----उसी प्रकार तमिल भाषा का व्याकरण रचने वाले महामुनि अगस्त्य, जिन्हें तमिल के प्रथम संगम (भाषा सम्मलेन) का मुखिया माना जाता है, भी अपनी रचनाओं का स्रोत महादेव शिव को ही बताते हैं।


सत्य सनातन धर्म 🚩

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